Declaration

All the works are of a purely literary nature and are set on the fictional planet of Abracadabra. It has nothing to do with earthly affairs.

Wednesday, November 11, 2015

तितलियाँ री तितलियाँ

तितलियाँ री तितलियाँ
नीली तितलियाँ पीली तितलियाँ
रंग बिरंगी तितलियाँ
उड़ रही हैं आस-पास
धूप छनकर गिर रही है
इन मासूमों के पँखों से
और धरती पर बिखेरती जाती हैं ये  
अपनी सुन्दर सी परछाईयां

इस सवेरे उठकर देखा
शान्त प्रांगन के बीच
छुट्टी मनाती ये तितलियां
हरी घास और लम्बें पेड़ों
के बीच मचलती ये तितलियाँ
हलके से छूकर चली जाती
प्रसन्नचित्त और स्वतंत्र, चारों ओर
ठहकती-मचलती ये तितलियाँ

मन के अन्दर छिपी
कल्पनाओं की तरह
कभी बैठती कभी उड़ जाती
एक सामान्य से प्राणी को
जीवन दर्शन का पाठ पढ़ाती
आत्म-मंथन का मार्ग प्रशस्त करती
और फिर देखते ही देखते
उड़ जाती ये तितलियाँ

सर्दी की पहली सुगबुगाहट
जब धूप से परेशानी नहीं होती
इन नाचती हुई तितलियों की
क्रीड़ा को देख कर मन भर जाता है
पलों को समेटती, क्षण-भंगुरता से  
द्वंद करती, अपने एहसास को फैलाती
और अंत में बटोरती कुछ नहीं
सिर्फ ठह्कती-मचलती,
और उड़ जाती ये तितलियाँ
  
और आओ, और आओ
मेरे ज़िन्दगी के बागीचे में   
तितलियाँ री तितलियाँ
नीली तितलियाँ पीली तितलियाँ
रंग बिरंगी तितलियाँ

Sunday, October 4, 2015

Adventures on a Rudimentary Boat

A boat shall
Start sailing
Today.
It would not be
The first boat
To sail on this earth.
For innumerable boats
Have already sailed.
But nevertheless,
It is a special boat
Though rudimentary
But still sturdy.
For it has a soul
Nurtured by righteousness.
The sail cloth sprinkled
With softness of heart
Shall keep tugging on it
And goading it to sail in
The right direction.

And how will
The boat sail
Only time
Can tell.
But for sure
It is going to be
An adventure
For the sailors
Like never before.
For sailing together
And sailing alone
Are entirely different.

Of course
There would be
The moon overhead
And cool breeze
Of midnights
And there would be
Rising waters
Storms and tsunamis
And to soothe
The weary sailors
There would
Be long spells
Of monsoon winds
To enable the sails
Glide over the waters

Whatever it may be
But
For sure it is
Going to be
An adventure
On a rudimentary boat.

So enjoy the adventure
For you are a
Different sailor now
And, yes, sail well.



















Monday, June 29, 2015

नाव

उदास आया था
उदास लौट रहा हूँ
लेकिन इस बात को लेकर
कोई उदासी नहीं है
ज़िंदगी की गहराइयों में
ज्यों-ज्यों उतरता गया
परत दर परत तह कर रखी
उदासी ही मिलती गयी

बारिश का मौसम है
खाने की चीज़ें और
दिल की दीवारें
दोनों में सीलन पड़ गयी हैं
सूखते रिश्ते
बिखरती हुई यादें
जिन्हें संजोता-समेटता
ज़िन्दगी के एक सफ़र से लौटा

एक बार फिर समझ में आया की
गतिमान समय के सिवा
सब कुछ बदलता है
सब पीछे छूटता है
सिर्फ सिसिफियस का साथ रहता है
इसलिए ज़िन्दगी की नाव में
अनेकों चक्कर लगते रहेंगे
जब तक नाव डूब नहीं जाती

इसलिए आशा की नाव
खेने के सिवा
कोई और रास्ता नहीं  
यह भी समझ में आया की
यह कोई ट्रेजेडी नहीं है
सिर्फ सत्य है
इसलिए इस बात को लेकर भी
कोई उदासी नहीं है

Sunday, March 22, 2015

मेला

कल मैं बाबा शेरशाह की मज़ार पर लगे मेले पर गया। जा कर अच्छा लगा इसलिए सोचा आप सभी देवियों और सज्जनों को लिख कर इसके बारे में बताऊँ।

हुआ यूँ की शाम में टहलने के लिए निकला था। बीच में कार्यालय के एक सज्जन मिल गए। उन्होंने बताया की पास में ही एक पीर बाबा लेटे हुए हैं और वहां मेला भी लगा हुआ है। उनके सुझाव पर मैं उसी ओर निकल लिया।

करीब दस मिनट चलने के बाद मेले के प्रांगन में पहुंचा। चारों ओर चहल-पहल थी। मैं पहले मज़ार पर गया। बाबा पर इत्र की शीशियाँ उढेली जा रही थी। इसलिए चारों तरफ का माहौल खुशबुनुमा हो रहा था। थोड़ी देर खड़ा रहा। ऊपर गुम्बद का अन्दर वाला हिस्सा दिख रहा था जिसमें शायद अरबी में आयतें लिखी हुई थी। लोग माथा टेक रहे थे। औरतें बैठे हुए मन ही मन कुछ पढ़ रही थी। इन सब को देखने के थोड़ी देर बाद बाहर आ गया और मेले में टहलने लगा।

उसी स्थान से सिर्फ 20 मीटर की दूरी पर छिन्नमस्ता  माता का मंदिर है। जनवरी के महीने में वहीँ पर मेला लगा हुआ था। उस मेले में भी मैं गया था। और कल पीर बाबा की मज़ार पर लगे मेले में गया। दोनों मेले में एक जैसी ही रौनक थी। खोमचे वाले भी वही थे। झूले वाले, चाट वाले, मिठाइयों वाले, खिलौने वाले सब एक जैसे ही लग रहे थे। बच्चे अच्छे-अच्छे कपड़ों में घूम रहे थे और मेले का मज़ा ले रहे थे। यहाँ पर अब भी झूलों की अहमियत थी। छोटी-छोटी दुकानों पर मिलने वाले खाने-पीने की चीज़ों की अहमियत थी। ऐसी जगहों पर रहने से, ऐसे मेलों में जाने से पक्का विश्वास हो जाता है की भारत में कई भारत बसते हैं। एक दूसरे से सदियों दूर लेकिन फिर भी पास-पास। महानगरों में रहने वाले लोग शायद इन चीज़ों की अहमियत को नहीं समझ पाए। वहां तो अब मनोरंजन भी बाज़ारवाद की चका-चौंध में सिमट कर रह गया और कई पैकेज में बिक रहा है।

खैर इन बातों को छोड़िये।

टहलते–टहलते मैं एक तस्वीर बेचने वाले की दुकान पर पहुंचा। रुक कर चादर पर फैले हुए तस्वीरों को देखने लगा। देखकर काफ़ी इत्मिनान हुआ। एक तरफ की तस्वीरों में अरबी में आयतें लिखी हुई थी और दूसरी ओर कई हिन्दू देवी-देवता विभिन्न मुद्राओं में प्रसन्नचित्त हो आशीर्वाद दे रहे थे। एक तस्वीर में एक बच्चा कुरान पढ़ रहा था और बगल की ही तस्वीर में गणेश जी महाभारत लिखने की मुद्रा में आसीन थे। एक तरफ मक्का और काबा की रौनक थी और दूसरी तरफ शंकर भगवान कैलाश पर्वत पर डमरू बजा रहे थे और देवी पार्वती उन्हें निहार रही थी। हालाँकि मैंने कोई तस्वीर नहीं खरीदी लेकिन बहुत दिन बाद बहुत अच्छा लगा।

आसनसोल से 20 किलोमीटर दूर दामोदर-बराकर के संगम पर बसे दिसरगढ़ नाम के इस छोटे से गाँव के मेले में यह बात समझ में आई की गंगा-जमुनी तहज़ीब का मतलब क्या होता है। समझ में आया की रज़ा साहब की गंगौली का ‘आधा गाँव’ ही नहीं, पूरा गाँव सन सैंतालिस के पहले कैसी होगी। खौफ़ और नफरत से पैदा होते ‘तमस’ से उजड़े बगीचों को तो साहनी जी हमें दिखा ही चुके थे। पता चला की कमलेश्वर जी के कितने पाकिस्तानों को फिर से नहीं बनने देने के लिए इन मेलों का होना कितना ज़रूरी है। आज-कल समाचार पत्रों को पढ़कर, फेसबुक पर लोगों के और कभी-कभी अपने ही मित्रों के कमेंट्स और पोस्ट्स देखकर खासा उदास हो जाता हूँ। सोचता हूँ हमसे तो बेहतर ये तस्वीरें है जो इत्मिनान से एक दूसरे के पास लेटी हुई हैं। इनके पास तो मष्तिष्क नहीं है, इन्हें हम निर्जीव मानते है लेकिन हम सजीव होकर भी एक-दूसरे के प्रति व्यमन्स्व क्यों पालते हैं।

खैर आगे चलते हैं।

मुझे भारत में रहने में इसलिए भी मज़ा आता है क्योंकि यहाँ तो इतने सारे त्यौहार होते हैं की एक खत्म नहीं हुआ की दूसरा शुरू। एक मेला ख़त्म नहीं हुआ की दूसरा शुरू। धर्म कोई भी हो, हमें तो मेले का मज़ा लेने में ही दिलचस्पी है। जैसे शादियों में मेरा ध्यान सिर्फ खाने पर होता है, वैसे ही मेले में चाट खाने में और इधर–उधर घूमने में ही फोकस करता हूँ। और हाँ, ना ही मुझे किसी धर्म विशेष में पैदा होने का गर्व है ना ही किसी में न पैदा होने का मलाल। इसलिए मैं गर्व से कुछ भी नहीं कहूँगा। और ना ही कोई और धर्म को मानने वाला मेरा दुश्मन है। आखिर मुझसे पूछ कर तो मेरा धर्म नहीं तय किया गया। खास बात यह है की भैया इ धरम-जात वाली बात हमरे पल्ले नाही पड़त। धरम कौनो हो, जात कौनो हो, हम इनका का करब, लोटा में घोर के पीयब तो नाही। इ सब ता भैया ‘लक’ की बात भइल। हम तो पीर बाबा की मज़ार पर भी जाइब और माता छिन्नमस्ता के मेले में भी जाइब। काहेकी हमरा फोकस तो भैया मेला होइब और उहाँ की चाट, हसत-मुस्कुरात बच्चे और जवान छोकरियन और बस कुछ नाही।

Saturday, February 21, 2015

तुम हो

सामने पड़े पेंसिल बॉक्स में
अनुभूतियों को उड़ेलती फाउंटेन पेन में
दामोदर की बहती धारा में
किनारे बिखरे रेत के कणों में
दरख़्त की लम्बी परछाइयों में
आंधी से टूटे सेमल के फूलों में
सुबह की सूनी सड़कों में
रात की खामोशियों में
वक़्त की आजमाइशों में
ज़िंदगी की नेयमतों में
मेरी कहानियों-कविताओं में
मेरे ज़हन की गहराइयों में
तुम हो
तुम हो

Sunday, February 1, 2015

अभी और उड़ने की तमन्ना है

जीवन पथ पर आगे बढ़ने की
चुनौतियों का सामना करने की
ज़िन्दगी को फ़िर से जीने की
अभी और उड़ने की तमन्ना है

लगता हो मार्ग भले ही दिशाहीन
आशाओं का सूरज अस्त होता क्षितिज पर
शक्ति भी क्षीण पड़ रही है लेकिन
अभी और उड़ने की तमन्ना है

बाधाएँ- दुविधाएँ मानस पटल को भेदती
दुर्भिसंधियाँ पारस्परिक संग्राम करती
सबको आत्मसात् न करने की पीड़ा होती लेकिन
अभी और उड़ने की तमन्ना है

आज आशा-रूपी सूरज डूब गया तो क्या
कल फिर आकाश के दूसरे छोर से उगेगा
एक हलकी सी धूप मेरे शरीर को छुएगी
और मैं फिर खो जाऊँगा परियों के देस में

इसलिए अभी और उड़ने की तमन्ना है।



Friday, January 16, 2015

I miss you..........

So well I came to know
That I miss you
Only when I have left you
And gone ahead on the road

Especially on cold mornings
When the chill gets to my bones
I miss your presence by my side
Warming my body and soul

On cold dark nights
When my spirits are down
I miss your inviting bosom
Cajoling me to soak its warmth

On warm sunny afternoons
I miss your tender loins
Touching by my sides
And teasing me to hug you

Well life is a road
And I must travel
Even when I miss you
Your body and your soul



Thursday, January 15, 2015

कुछ छोड़ कर आया हूँ मैं।

कुछ पल, कुछ यादें 
कुछ लम्हे , कुछ नग़में
एक खालीपन की चादर
ओढ़ ली है मैंने। 
गम तो होता है 
किसी जगह को 
छोड़ कर जाने का
संसार तो थोड़े समय के लिये ही सही 
बिखर तो जाता ही है।

लेकिन परेशान होने से क्या
आशा की नई कोपलों को 
फ़िर से जन्म तो लेना ही होगा
गतिमय संसार में निरंतरता ही 
एक मात्र सत्य है।
हमेशा ही कुछ पीछे छूटेगा
तो क्या मनुष्य निरंतर
यादों का स्वेटर ही बुनता रहेगा।
एक नई जगह एक नया सवेरा
हो रहा है दामोदर के तट पर।








किसको मैं कविता सुनाऊँ?

इस पार
इस वीरानें में
जहाँ वृक्ष हैं
पक्षी हैं
दामोदर की
कलकल धारा है
लेकिन तुम नहीं
तो बताओ
किसको मैं
कविता सुनाऊँ?


Sunday, January 11, 2015

पुरज़े

कलम के कई उपहार 
कमीज़ की थैली 
मेखला चादर 
रेस्तरां का बिल 
तुम्हारी लिखावट वाला 
मामूली कागज़  
एक कॉपी जिसमें 
बीते दिनों की बातें लिखी हैं 
और 
सिनेमा की टिकटें
तुड़ी-मुड़ी 
जिन्हें मैं सहेज कर 
 ले जा रहा हूँ
अपने साथ 
एक नई जगह 
जहाँ एक बार फिर से 
बसने की कोशिश करूँगा 
और इन पुरजों को 
किसी कोने में 
छुपा दूंगा 
दिल के कोने में और 
अलमारी के कोने में 
इन कोशिशों से 
शायद याद रख पाऊंगा 
वो लम्हे 
वे दिन




Tuesday, January 6, 2015

तौलिया

तुम्हारे बदन की भीनी खुशबू 
क़ैद है उसी तौलिये में 
जिससे तुमने अपने अंगों से 
पानी की बूँदों को हटाया था। 

आज  यूँ ही सामान बाँधते हुए 
वही तौलिया नज़र आया 
अलमारी की दूसरी खटाल पर 
तह कर रखा हुआ था । 

तो  फिर अचानक 
याद आए वो चंद लम्हे  
जब तुम यहाँ थे
इसी कमरे में 
जिसे अब मैं खुद 
छोड़ कर  जा रहा हूँ। 

Thursday, January 1, 2015

Silences……

Silences……

Speaking with shadows
Of flesh and blood
Of truths and falsehoods
Of dreams and desires
Of past and present
And an uncertain future

I am amazed
At such clairvoyance
Even when noises
Try to drown them 
In a pool of madness
And sensibilities

Silences......

Abounding in familiar
And unfamiliar corners
Of heart and mind
Oscillating like a pendulum
Between real and unreal
Preventing disintegration and collapse

Holding a flickering candle
On cold dark nights
They lead me to an island
Growing in the midst of
A sea of emptiness
The island of hope

Silences……