Declaration

All the works are of a purely literary nature and are set on the fictional planet of Abracadabra. It has nothing to do with earthly affairs.

Thursday, January 15, 2015

कुछ छोड़ कर आया हूँ मैं।

कुछ पल, कुछ यादें 
कुछ लम्हे , कुछ नग़में
एक खालीपन की चादर
ओढ़ ली है मैंने। 
गम तो होता है 
किसी जगह को 
छोड़ कर जाने का
संसार तो थोड़े समय के लिये ही सही 
बिखर तो जाता ही है।

लेकिन परेशान होने से क्या
आशा की नई कोपलों को 
फ़िर से जन्म तो लेना ही होगा
गतिमय संसार में निरंतरता ही 
एक मात्र सत्य है।
हमेशा ही कुछ पीछे छूटेगा
तो क्या मनुष्य निरंतर
यादों का स्वेटर ही बुनता रहेगा।
एक नई जगह एक नया सवेरा
हो रहा है दामोदर के तट पर।








2 comments:

  1. hota to sab kuch purana hi hai, sadiyon se yahan kuch naya nahi hua, aadmi lekin usi ko dubara karta hai, ek nayi urja ke sath, shayad isi bahaney usey nayapan ka ehsaas ho sakey :) likhtey chalo badhtey chalo, apney vritt mein, jis mod se dubara guzro, puraney git kuch aisey gao ki sab kuch naya ho jaye, yeh Damodar bhi to naya hona chahta hai, tum yahan pahley bhi to aaye they, wahi tumhey bula raha hai, Damodar ko yaad rakhna :)

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  2. तुम्हारी बातों से सुकून और सहारा दोनों मिलता है। दामोदर मेरा ख्याल रखे बस इतनी ही आशा है। दामोदर को तो मैं हमेशा याद रखूँगा क्योंकि यहाँ पहुँच कर ऐसी अनुभूतियाँ हुईं जैसी कभी नहीं हुई थी। मुझ्र अपने ही नए स्वरुप का पता चला।

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