सामने पड़े पेंसिल बॉक्स में
अनुभूतियों को उड़ेलती फाउंटेन पेन में
दामोदर की बहती धारा में
किनारे बिखरे रेत के कणों में
दरख़्त की लम्बी परछाइयों में
आंधी से टूटे सेमल के फूलों में
सुबह की सूनी सड़कों में
रात की खामोशियों में
वक़्त की आजमाइशों में
ज़िंदगी की नेयमतों में
मेरी कहानियों-कविताओं में
मेरे ज़हन की गहराइयों में
तुम हो
तुम हो
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