Declaration

All the works are of a purely literary nature and are set on the fictional planet of Abracadabra. It has nothing to do with earthly affairs.

Wednesday, August 7, 2013

उदासी पर एक कविता


बारिश की बूंदों का निरंतर टपटपाता स्वर
कभी धीमी कभी तेज़ पर निरंतर
जेल जैसी खिडकियों से बाहर झांकते हुए
सपाट फैले संसार के सूनेपन को देखता हूँ
एक बेबाक बेलौस सूनापन जो कभी भयावह भी हो जाता है
मानवीय रिश्तों और विसंगतियों के बारे में सोचता हूँ
शून्यता के गर्क में सिमटती संवेदनाएं-भावनाएं
क्या यही है इनका मूल तथ्य – अन्तत: खोखली
कहीं आडम्बर के साथ तो कहीं शुद्ध स्वार्थ प्रदर्शन
कहीं अर्थ की चिंता कहीं अतृप्त काम का बोध
इन सब के बीच पुरुषार्थ नष्ट ही हो गया है
यह सब समझकर-जानकर उदास होना
स्वाभाविक तो हो सकता है पर जायज़ तो नहीं है
आखिरकार सुख तो बारिश की बूंदों से उत्पन्न
बुलबुले जैसी चरित्र की ही तो होती है
मानवीय स्थिति का मात्र एक पहलू भर है
इन सबके बाद भी सिर्फ इंसान बने रहने का संघर्ष तो लाज़मी है  



2 comments:

  1. yeh sab kahan se sochte ho bhai.....dil chu jata hai......

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    1. अपने चारों तरफ़ देखता हूँ, फिर जब सही-सही समझ नहीं पाता हूँ तब उस पर लिखकर पूरी तरह समझने की कोशिश होती है.

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