Declaration

All the works are of a purely literary nature and are set on the fictional planet of Abracadabra. It has nothing to do with earthly affairs.

Friday, January 16, 2015

I miss you..........

So well I came to know
That I miss you
Only when I have left you
And gone ahead on the road

Especially on cold mornings
When the chill gets to my bones
I miss your presence by my side
Warming my body and soul

On cold dark nights
When my spirits are down
I miss your inviting bosom
Cajoling me to soak its warmth

On warm sunny afternoons
I miss your tender loins
Touching by my sides
And teasing me to hug you

Well life is a road
And I must travel
Even when I miss you
Your body and your soul



Thursday, January 15, 2015

कुछ छोड़ कर आया हूँ मैं।

कुछ पल, कुछ यादें 
कुछ लम्हे , कुछ नग़में
एक खालीपन की चादर
ओढ़ ली है मैंने। 
गम तो होता है 
किसी जगह को 
छोड़ कर जाने का
संसार तो थोड़े समय के लिये ही सही 
बिखर तो जाता ही है।

लेकिन परेशान होने से क्या
आशा की नई कोपलों को 
फ़िर से जन्म तो लेना ही होगा
गतिमय संसार में निरंतरता ही 
एक मात्र सत्य है।
हमेशा ही कुछ पीछे छूटेगा
तो क्या मनुष्य निरंतर
यादों का स्वेटर ही बुनता रहेगा।
एक नई जगह एक नया सवेरा
हो रहा है दामोदर के तट पर।








किसको मैं कविता सुनाऊँ?

इस पार
इस वीरानें में
जहाँ वृक्ष हैं
पक्षी हैं
दामोदर की
कलकल धारा है
लेकिन तुम नहीं
तो बताओ
किसको मैं
कविता सुनाऊँ?


Sunday, January 11, 2015

पुरज़े

कलम के कई उपहार 
कमीज़ की थैली 
मेखला चादर 
रेस्तरां का बिल 
तुम्हारी लिखावट वाला 
मामूली कागज़  
एक कॉपी जिसमें 
बीते दिनों की बातें लिखी हैं 
और 
सिनेमा की टिकटें
तुड़ी-मुड़ी 
जिन्हें मैं सहेज कर 
 ले जा रहा हूँ
अपने साथ 
एक नई जगह 
जहाँ एक बार फिर से 
बसने की कोशिश करूँगा 
और इन पुरजों को 
किसी कोने में 
छुपा दूंगा 
दिल के कोने में और 
अलमारी के कोने में 
इन कोशिशों से 
शायद याद रख पाऊंगा 
वो लम्हे 
वे दिन




Tuesday, January 6, 2015

तौलिया

तुम्हारे बदन की भीनी खुशबू 
क़ैद है उसी तौलिये में 
जिससे तुमने अपने अंगों से 
पानी की बूँदों को हटाया था। 

आज  यूँ ही सामान बाँधते हुए 
वही तौलिया नज़र आया 
अलमारी की दूसरी खटाल पर 
तह कर रखा हुआ था । 

तो  फिर अचानक 
याद आए वो चंद लम्हे  
जब तुम यहाँ थे
इसी कमरे में 
जिसे अब मैं खुद 
छोड़ कर  जा रहा हूँ। 

Thursday, January 1, 2015

Silences……

Silences……

Speaking with shadows
Of flesh and blood
Of truths and falsehoods
Of dreams and desires
Of past and present
And an uncertain future

I am amazed
At such clairvoyance
Even when noises
Try to drown them 
In a pool of madness
And sensibilities

Silences......

Abounding in familiar
And unfamiliar corners
Of heart and mind
Oscillating like a pendulum
Between real and unreal
Preventing disintegration and collapse

Holding a flickering candle
On cold dark nights
They lead me to an island
Growing in the midst of
A sea of emptiness
The island of hope

Silences……