Declaration

All the works are of a purely literary nature and are set on the fictional planet of Abracadabra. It has nothing to do with earthly affairs.

Thursday, November 8, 2012

अरमान

समंदर का किनारा। जाने कितने लोग। अलग अलग तरह के। बच्चे, युगल जोड़े, उम्रदराज़, बूढ़े, सभी वराइटी के मौजूद थे। मज़ेदार नज़ारा था चारों तरफ। समंदर की लहरें दौड़ कर आती, एक शोर उमड़ता, कोई किसी को पकड़ता, कोई लहरों के आवेग से किनारे की तरफ पटकाता। कुछ भीगने से बचने के लिए पीछे की ओर दौड़ते।

अनगिनत लोगों को देख मेरे ज़ेहन में सिर्फ एक शब्द धीरे-धीरे उभर रहा था। मुझे खुद भी इसका एहसास नहीं था। एक जोड़े पर जाकर निगाह थोड़े देर तक टिकी। पहले दोनों नहा रहे थे। हल्की -फुल्की शरारतों से मन बहला रहे थे। लड़का उस पर पानी के छींटे फेंकता को लड़की भी कहाँ हार मानने वाली थी। वो भी उस पर पानी बरसाती लेकिन जब लम्बा वेग जब आता तो उसी से लिपट जाती। उस समय लड़का उसे चिढ़ाता। फिर अन्दर गहरे पानी में जाकर एक दूसरे की फोटो खींचते। बड़ा ही मनोरंजक खेल लग रहा था। 

मन बहलाने के लिए रेत के टीले बनाने की कोशिश करने लगा। कुछ भी बनाने में असफल फिर यकायक ध्यान उसी युगल जोड़े की ओर गया। इस बार दोनों ऊंट पर थे। लड़की आगे थी और लड़का उसके पीछे। लड़की की हंसी से पूरा माहौल गूंज रहा था। लग रहा था वो दोनों आज दिल के सारे अरमान पूरे कर लेना चाहते थे। अरे हाँ यही तो वो शब्द था जो मैं तलाश रहा था। अरमान। चलो मिल गया।

अरमान, क्या इसी को पूरा करने की तलाश में सभी लोग उस समंदर के तट पर आये थे? क्या वो जोड़ा भी अपने अरमान पूरे करने आया था? हो सकता है हनीमून पर आये हों। जीवन की आपा-धापी शुरू होने से पहले एक दूसरे के संग कुछ वक्त बिताने, साथ में मस्ती करने, ख़ुशी के कुछ अनछुए, बेदाग़, बेलगाम पलों में मौजूद रूहानियत को बटोरने।

जिंदगी वाले नाटक में अगर समंदर के किनारे वाला ही सीन होता तो बात और होती। फिर तो अरमानों का ही बसंत चलता रहता और जाड़े की ठिठुरन और गर्मी की तपिश कहीं होती ही नहीं। माना की मौसम बदलेगा। उन जोड़ों के बीच खिट-पिट होगी। लेकिन अभी से क्यूँ उसके बारे में सोचें? अभी तो मस्ती का टाइम हैं। बसंत का मज़ा और अरमानों की लड़ी बस यही, बाकी सब बाद में।

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