Declaration

All the works are of a purely literary nature and are set on the fictional planet of Abracadabra. It has nothing to do with earthly affairs.

Monday, July 2, 2012

पढ़े-लिखे लोग (4) जात/ रोहन


रामनरेश चचा पढ़े लिखे थे। १९८० में   ग्रेजुएट हो गए थे। मैं उषा-काल सैर के लिए नदी की ओर निकला।  दूर सामने बरगद का एक पेड़ था। सामने एक लटकी हुई आकृति नज़र आई। विक्रम बेताल की याद गयी। पास गया तो देखा रोहन लटका हुआ था। मैं चिल्लाया। आस -पास के लोग तुरंत जुट गए। रोहन को लटका देख मुहं बिचका सब अपने रस्ते हो लिए। लगता था कुछ हुआ ही नहीं है। बड़ी मशक्कत से उसकी ठंडी पर चुकी लाश को उतारा। हट्टा-कट्टा शरीर, चौड़ा सीना, जवानी पूरे जोश में थी। सिर्फ एक गलती हो गयी। गाँव के मुखिया की छोकरियन से नैन-मटक्का हो गया। रामनरेश चचा ही गाँव के मुखिया थे। ऊँचे जात के थे और मूंछों पर हमेशा ताव देकर जताते रहते थे। रोहन बैकवर्ड था और एक फारवर्ड की लड़की से इश्कबाजी करने की जुर्रत की। इसी बरगद की छाँव में जाने कब उनका प्यार जवान हो गया। दोनों ने सोचा शादी कर लें। बबिता को अपने पापा रामनरेश बाबू पर पूरा भरोसा था। आखिर पढ़े लिखे जो थे। एक रात ऐसे ही मजाक में कहा ,"मैं शादी करना चाहती हूँ।" "किससे?", रामनरेश बाबू ने पूछा। "है कोई",बोल के बात को टाल दिया। बाद में पता कराया तो रोहन का नाम सामने आया। बड़ों-बुज़र्गों के बीच सलाह-मशविरा हुआ। सबने बोला मार देते हैं, सभी के लिए उदाहरण बन जायेगा। तब किसी नीच जात की मजाल नहीं की हमारी लड़कियों की तरफ कभी आँख उठाकर देखे। रात को गुमराह कर नदी के तट पर ले गए। पहले लाठियों से मारा। जब अधमरा हो गया तो उसी बरगद के पेड़ से लटका कर फांसी लगा दी।

रामनरेश चचा पढ़े लिखे लोग थे।

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