Declaration

All the works are of a purely literary nature and are set on the fictional planet of Abracadabra. It has nothing to do with earthly affairs.

Monday, June 25, 2012

पढ़े-लिखे लोग (1) चोरी/ रतन बाबू


पढ़े-लिखे लोग
(काल्पनिक कथाएं या अफवाहों पर आधारित जिसका समाज से कोई लेना-देना नहीं)
1. चोरी/ रतन बाबू
रतन बाबू पढ़े-लिखे थे। रेलवे में दस साल से टी.टी. थे। अभी सुबह की गाड़ी से ही लौटे थे। रात भर कीकमाई’/’वसूलीसे फुले हुए पर्स को टेबल पर रख नहाने चले गए। कलुआ घर की सफाई कर रहा था। कमरे में कोई नहीं था। मालकिन रसोई में रतन बाबू के लिए नाश्ता बना रही थी। कलुआ की नज़र पर्स पर पड़ी। किसी को नहीं देख कर ख्याल आया क्यों पर्स को थोड़ा हल्का किया जाये। रतन बाबू को थोड़े ही पता चलेगा। तपाक से सौ-सौ के पांच नोट निकाल जल्दी-जल्दी सफाई कर वहां से छूमंतर हो गया। रतन बाबू नहाकर नाश्ता करने लगे। लड़का गया और जेब खर्च के लिए ची-पों शुरू कर दी। कुछ देर टालने के बाद हार मान  पर्स लाने को कहा। पैसे निकल कर देखा तो कुछ कम लगे। सोचा लगता है, मित्रों ने उन्हे बटाई में धोखा दिया। फोन करके राधे जी से पूछा की बटाई में कोई झोल तो  नहीं था। तो फिर पैसे गए कहाँ? रतन बाबू चिल्ला-चिल्ली कर पूरे मोहल्ले को जना दिया की चोरी हुई है। घर के बाहर भीड़ जमा हो गयी। तभी उधर से जोगी चाचा आते दिखे। कहा अभी-अभी कलुआ के पास ही जुए में बैठा था। उसके पास सौ-सौ के कड़क नोट थे। अब शक की कोई गुंजाईश नहीं थी। रतन बाबू दौड़े जुआ-खाने की ओर इस से पहले की कलुआरिएक्टकर पाता, रतन बाबू उसकी छाती पर थे। भीड़ ने कलुआ को सबक सिखाने की सोची। दो आदमियों ने कलुआ के हाथ को  पीछे बांध दिया और पेड़ से उल्टा लटका दिया। भीड़ को इस बात का क्लेश था की एकनीचजात के आदमी की ये मजाल कीफारवर्ड कास्टवाले के यहाँ चोरी कर ले। कुटाई चालू हो गयी। ये तो फारवर्ड वाले कीइज्ज़त’  की बात थी। जिसे मिल गया उसी ने हाथ साफ कर लिया। मुशहर टोला के लोग दूर से ही डब-डबाई आखों से मौत का ये सभ्य नाच देख रहे थे। घंटे भर की कुटाई के बाद कलुआ मर गया। रतन बाबू के कहने पर पेड़ से उतार नीचे फ़ेंक दिया गया उसकी लाश को मुसहर टोला की ओर जाने वाली सड़क पर। एक राहगीर ने पूछा, “भाई क्या हुआ?”, रतन बाबू ने सीना चौड़ा करके बोले, “साला, चोर था, मर गया साला।जैसे हीचोरशब्द ज़बान से छूटा, रतन बाबू को लगा, मांस का लोथड़ा अट्टहास कर रहा है।
रतन बाबू पढ़े-लिखे लोग थे।

1 comment:

  1. I would like to paraphrase Mr. Zinn here, the cry of poor is not always just, but if u dont listen to it, you will never know what justice is. Glad u listen and write about it...hope remains alive that way. Nice one..simple and forceful!!

    ReplyDelete