Declaration

All the works are of a purely literary nature and are set on the fictional planet of Abracadabra. It has nothing to do with earthly affairs.

Saturday, June 30, 2012

पढ़े-लिखे लोग (2) एम.बी.ए./ मीता


मीता पढ़ी-लिखी थी। कभी कभार सोशल-वर्कमें भी इंटरेस्ट लेती थी।  प्लेसमेंट की दौड़ शुरू हो चुकी थी। दुनिया की जानी-मानी तेल की एक कंपनी का प्रोसेस चल रहा था। दस राउंड की परीक्षा के बाद मीता सफलहुई थी। अब मीता एक मोटे पैकेजके साथ उस तेल की कंपनी का एक हिस्सा बन गयी थी। शायद उसे नहीं पता था इस तेल कंपनी की लंबी दास्तान। या शायद उसने ज़रूरी नहीं समझा इस बात को जानने की। अब करियरकी दौड़ में आत्मा की आवाज़ जैसी फालतू चीज़ों पर ध्यान देना कितनी दकियानूसी सोंच है। इसी तेल कंपनी ने एशिया, अफ्रीका, अमरीका के कितने देशों में क्या-क्या गुल खिलाये हैं। शायद उसे केन सारु विवा की बुलंद आवाज़ नहीं सुनाई दी। शायद इकुएडोर, नाइजीरिया, इराक, जैसे कितने ही देशों के अवाम की चीखें आई-फोन के इयर-फोनके लगे होने के कारण कानों की परत को नहीं भेद पाए। अब मीता ही इतना क्यूँ सोचे, क्या उसने पूरी दुनिया का ठेका लिए हुए है। अब अपने मोहन को देख लो। भारत की सबसे बड़ी सिगरेट कंपनी के लिए काम करता है ठेठ भाषा में बोले तो कैंसर बेचता है पर उसकी चौड़ाई  तो देखो। या अपने समर भाई को ही देख लो। गोरों के लिए अफ्रीका को लूटने का काम आसान कर रहा है। साम्राज्यवाद खत्म हो गया है। लोग ऐसा बोलते हैं। अरे भाई, अब गोरों को खुद अफ्रीका जाकर अपने ही हाथों से लूटने का (गन्दा) काम करने की क्या ज़रूरत है जब भारत की एम.बी.ए. की फैक्ट्रियों में ग्रेजुएट थोक के भाव निकल रहे हैं। चलो अब मीता भी उस विरासत को आगे बढ़ाएगी, कंपनी को मुनाफा देगी, तभी तो ३६० डिग्री फीडबैक मे एक्स्ल्लेंट मिलेगा। वैसे कहते हैं न इश्क ओर जंग में तो सब जायज़ है ओर यह जिंदगी भी तो किसी जंग से कम तो नहीं। सब चलता है। सोचना सिर्फ सनकियों का काम है। चलो आगे चलो। करियर वाली फिल्म शुरू हो गयी। दिमाग  लगा सोचने बैठ गया तो फिल्म आगे निकल जायेगी। अरे दौड़ो भाई। अरे आप नहीं दौड़ सकते तो हट जाईये न।
मीता ओर मोहन ओर उनकी जमात पढ़े-लिखे लोग थे।


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