राम बाबू पड़े-लिखे थे। इनकम टैक्स विभाग में
ऑफिसर थे। पत्नी कुसुम पेट से थी। गोलाई को देख कर लगा तीसरा महीना चल रहा होगा।
मई की इस दोपहरी में उधर से निकलते हुए कुसुम भौजी को एक गुलाबी स्वेटर बुनते देख
अनायास ही पूछा, “भौजी , इ किसके लिए गुलाबी स्वेटर बुन रही हो?” “तमन्ना के लिए”,
बोलते हुए एक मीठी सी मुस्कान भौजी के होठों पर फ़ैल गयी। मैं थोड़ा अचकचाया। फिर भी
पूछा, “कौन तमन्ना”? भौजी गोलाई की ओर इशारा कर बोली, “तीसरा महीना चल रहा है।
दिसम्बर में तमन्ना आ जायेगी ओर उसे सर्दी में स्वेटर तो चाहिए होगा न।” भौजी से
मिठाई खिलाने बोल आगे निकल गया। कई दिन बीत गए। एक दिन भौजी के घर की ओर से ही
निकल रहा था, सोचा हाल-चाल पूछता चलूँ। देखा भौजी खटिया पर सोयी हुई थी। मुझे देख
अनमने ढंग से उठ खटिये पर बैठ गयी। “भौजी कैसी हो? तमन्ना ने अब तो पेट में उधम
मचाना शुरू कर दिया होगा?” भौजी को जैसे सांप सूंघ गया हो। एक दम चुप थी। मेरी नजर
तमन्ना की ओर गयी। कुछ अटपटा सा लगा। गोलाई अब सपाट थी। मेरा दिमाग झंनाया। अचानक
भौजी फूट-फूट कर रोने लगी। मैं सब समझ गया। भौजी सिर्फ इतना बोली, “गिरवा दिया, राम
बाबू को लल्ला चाहिए था।” मैं निकलने को हुआ। तभी भौजी ने एक मिनट रुकने को कहा।
धीरे-धीरे उठकर अंदर गयी। हाथ में वही अध-बुना गुलाबी स्वेटर था। कहा, “जाते-जाते
इसे पोखरा में फेंकते आइयेगा, तमन्ना को अब सर्दी कभी नहीं लगेगी।”
राम बाबू पड़े-लिखे लोग थे।
राम बाबू पड़े-लिखे लोग थे।