ये
शहर
एक
बड़ा सा
कैदखाना
जिस
में कैद हैं
अनगिनत
टूटते
ख्वाब
दबी
हुई सिसकियां
बुझती
उम्मीदें
सूखती
नदियाँ
मरते
हुए पेड़
प्रदूषित हवा
गाड़ियों
की चीखें
लोभ
कि भट्टी में
अहंकार
के ईंधन से
जलते
लोग
और
हम समझतें हैं कि
हम
आज़ाद हैं.
सिसिफियस
की तरह
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