उदास आया था
उदास लौट रहा
हूँ
लेकिन इस बात
को लेकर
कोई उदासी
नहीं है।
ज़िंदगी की
गहराइयों में
ज्यों-ज्यों
उतरता गया
परत दर परत तह
कर रखी
उदासी ही
मिलती गयी।
बारिश का मौसम
है
खाने की चीज़ें
और
दिल की
दीवारें
दोनों में
सीलन पड़ गयी हैं।
सूखते रिश्ते
बिखरती हुई
यादें
जिन्हें
संजोता-समेटता
ज़िन्दगी के एक
सफ़र से लौटा।
एक बार फिर समझ
में आया की
गतिमान समय के
सिवा
सब कुछ बदलता है
सब पीछे छूटता
है
सिर्फ
सिसिफियस का साथ रहता है
इसलिए ज़िन्दगी
की नाव में
अनेकों चक्कर लगते
रहेंगे
जब तक नाव डूब
नहीं जाती।
इसलिए आशा की
नाव
खेने के सिवा
कोई और रास्ता
नहीं
यह भी समझ में
आया की
यह कोई
ट्रेजेडी नहीं है
सिर्फ सत्य है
इसलिए इस बात
को लेकर भी
कोई उदासी
नहीं है।