Declaration

All the works are of a purely literary nature and are set on the fictional planet of Abracadabra. It has nothing to do with earthly affairs.

Monday, February 21, 2011

एक तमन्ना

ये पत्तियां कब हरी होगी
मेज़ पर रखा गुलदस्ता मुरझा सा गया है
गुलदस्ते में कुछ फूल रखे हैं
पहले दिन खिले थे अब मुरझा गएँ हैं
उनकी कुम्हलाहट मेरी मासूमियत की तरह कहीं खो गयी है
उनको छूकर मैं देखता हूँ
बातें करता हूँ बदहवास सा बौखलाया हुआ
अपनी तन्हाई मिटाता हूँ
मन को शांत करने की असफल कोशिश करता हूँ
आज एक अजीब सा सन्नाटा छाया है
ट्रियम की छत से धूप छन कर आ रही थी
कम्प्यूटर के पीछे हरी हरी बत्तियां टिमटिमा रही थी
उस लम्बे इंतज़ार के बाद पैरों में हल्का दर्द सा महसूस हो रहा था
पर क्या इस दर्द की कोई अहमियत थी
इस दुनिया में जहाँ प्रतिस्पर्धा ही एकमात्र सत्य है
प्रतिस्पर्धा जो इन्सान को कुत्ता बनाने पर अड़ गया है
एक ऐसी भूख जगा रहा जो सब कुछ खाने पर विवश कर रहा है
संकीर्णता की चारदीवारी में कैद कर रहा है

अब फूल नहीं मुस्कुराएँगें
बसंत भी सो जायेगा हमेशा के लिए
शिशिर का मौसम ही चलता रहेगा
लेकिन नहीं अभी उम्मीद की किरण बची है
एक ऐसे इन्सान की कल्पना
जो प्रतिस्पर्धा नहीं प्रेम का गीत गायेगा
प्रस्फुटित फूल की तरह अपनी खुशबू बिखेरेगा
इन्सान की भूख को वश में कर उसे प्रेम करना सिखाएगा
और तब बसंत फिर आएगा
अपनी कोमल सी चादर बिछाएगा
और इन्सान छोटे बच्चों की तरह उसमे सो जाएगा
फूल खिलेंगे दिल झूम उठेंगे मन गा उठेंगे
और तब मैं भी खो जाऊंगा उस बहार में
मुस्कुराते हुए

3 comments:

  1. Really nice work....I really am looking forward to reading you work in a published format one day and saying he was one of my friends at IIFT :)

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  2. @horizon: thanks for ur words. i too look forward to the day wen my work appears in a published format.

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